
शासकीय सेवकों के लिए प्रमोशन में आरक्षण विवाद पर एक नया मोड़ आया है। भारत सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दाखिल करके अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के संदर्भ में स्पष्टीकरण मांगा है।
पिछले 6 महीने में 1.3 लाख प्रमोशन रुके
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपनी एप्लीकेशन में गवर्नमेंट ऑफ इंडिया ने कहा है कि जनवरी, 2020 तक करीब 1.3 लाख प्रमोशन रुके पड़े हैं। प्रमोशन का काम रुका होने से सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों में भारी रोष है। सनद रहे कि मामले में सुप्रीम कोर्ट ने यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था।
केंद्र सरकार ने अस्थाई तौर पर प्रमोशन देने की इजाजत मांगी
सरकार ने आवेदन में गुहार लगाई है कि उसे अस्थायी तौर पर प्रमोशन करने की इजाजत दी जाए क्योंकि बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं। सरकार ने कहा है कि 78 विभागों में से 23 विभागों में प्रमोशन का काम रुका पड़ा है। सरकार का कहना है कि गत वर्ष 15 अप्रैल को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश के कारण आरक्षित और सामान्य श्रेणी के तमाम प्रमोशन पर पूरी तरह से रोक लगी हुई है।
शासकीय कर्मचारियों में भारी असंतोष
हर महीने बड़ी संख्या में सरकारी अधिकारी बिना प्रमोशन के सेवानिवृत्त हो रहे हैं। सरकारी नौकरों में इसे लेकर असंतोष व रोष है। वे हतोत्साहित भी हो रहे हैं। इसके अलावा इस कारण होने वाले वित्तीय नुकसान को लेकर भी उनमें असंतोष है।
2018 में भी इजाजत मिली थी
सरकार का कहना है कि कोरोना महामारी के समय लोगों को राहत प्रदान करने में अग्रिम मोर्चे पर काम कर रहे हैं। उनका मनोबल बनाए रखना जरूरी है। सरकार ने कहा है कि पहले भी इस तरह के आवेदन दाखिल किए गए थे और 17 मई 2018 और 5 जून 2018 को कोर्ट ने प्रमोशन इजाजत दी थी।
मालूम हो कि सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2017 में दिल्ली हाईकोर्ट के उस मेमोरेंडम को निरस्त कर दिया था जिसमें एससी-एसटी को प्रमोशन में आरक्षण देने की बात कही गई थी। केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है, जो फिलहाल लंबित है।
Source - Jagran
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