SEARCH

Employee Today

RAIL NEWS CENTER

14 May 2020

जानें क्या है GDP? जिसका 10 फीसदी कोरोना राहत पैकेज में PM मोदी ने दिया



प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना राहत पैकेज में 20 लाख करोड़ रुपये दिया है. ये भारत की जीडीपी का 10 फीसदी हिस्सा है. यानी भारतीय अर्थव्यवस्था 200 लाख करोड़ रुपये की है. बता दें कि भारत ने साल 2020-21 के लिए बजट करीब 30 लाख करोड़ रुपये निर्धारित किया है.

अगर वित्त वर्ष 2018-19 की बात करें तो इस साल देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी थी. वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंचा था. एक तरह से जीडीपी किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है. अगर जीडीपी बढ़ती है तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है. इसका यह भी मतलब है कि लोगों की आर्थिक समृद्धि‍ बढ़ रही है.

अगर वित्त वर्ष 2018-19 की बात करें तो इस साल देश की सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) ग्रोथ रेट 6.8 फीसदी थी. वित्त वर्ष (2019-20) की दूसरी तिमाही में जीडीपी ग्रोथ का आंकड़ा 4.5 फीसदी पहुंचा था. एक तरह से जीडीपी किसी देश के आर्थिक विकास का सबसे बड़ा पैमाना है. अगर जीडीपी बढ़ती है तो इसका मतलब है कि अर्थव्यवस्था ज्यादा रोजगार पैदा कर रही है. इसका यह भी मतलब है कि लोगों की आर्थिक समृद्धि‍ बढ़ रही है.

देश-दुनिया के किस हिस्से में कितना है कोरोना का कहर? यहां क्लिक कर देखें

क्या होता है GDP

किसी देश की सीमा में एक निर्धारित समय के भीतर तैयार सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मौद्रिक या बाजार मूल्य को सकल घरेलू उत्पाद (GDP) कहते हैं. यह किसी देश के घरेलू उत्पादन का व्यापक मापन होता है और इससे किसी देश की अर्थव्यवस्था की सेहत पता चलती है. इसकी गणना आमतौर पर सालाना होती है, लेकिन भारत में इसे हर तीन महीने यानी तिमाही भी आंका जाता है. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया.

कोरोना कमांडोज़ का हौसला बढ़ाएं और उन्हें शुक्रिया कहें

जीडीपी दो तरह की होती है नॉमिनल जीडीपी और रियल जीडीपी. नॉमिनल जीडीपी सभी आंकड़ों का मौजूदा कीमतों पर योग होता है, लेकिन रियल जीडीपी में महंगाई के असर को भी समायोजित कर लिया जाता है. यानी अगर किसी वस्तु के मूल्य में 10 रुपये की बढ़त हुई है और महंगाई 4 फीसदी है तो उसके रियल मूल्य में बढ़त 6 फीसदी ही मानी जाएगी. केंद्र सरकार ने देश को जो पांच ट्रिलियन इकोनॉमी बनाने की बात कही है, उसके लिए करेंट प्राइस यानी नॉमिनल जीडीपी को ही आधार बनाया गया है.

अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के अनुसार अप्रैल 2019 तक भारत का कुल जीडीपी (नॉमिनल यानी मौजूदा कीमतों पर) 2.972 अरब डॉलर था. दुनिया के कुल जीडीपी में भारत का हिस्सा करीब 3.36 फीसदी है. इसी प्रकार भारत का रियल जीडीपी (2011-12 की स्थि‍र कीमतों पर) 140.78 लाख करोड़ रुपये था.

सबसे पहले कब आया था कॉन्सेप्ट

साल 1654 और 1676 के बीच चले डच और अंग्रेजों के बीच अनुचित टैक्स को लेकर हुई लड़ाई के दौरान सबसे पहले जमीदारों की आलोचना करते हुए विलियम पेट्टी ने जीडीपी जैसी अवधारणा पेश की. हालांकि जीडीपी की आधुनिक अवधारणा सबसे पहले 1934 में अमेरिकी कांग्रेस रिपोर्ट के लिए सिमोन कुनजेट ने पेश किया. कुनजेट ने कहा कि इसे कल्याणकारी कार्यों के मापन के रूप में नहीं इस्तेमाल किया जा सकता.

हालांकि, 1944 के ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के बाद ही देशों की अर्थव्यवस्था को मापने के लिए जीडीपी का इस्तेमाल किया जाने लगा. पहले जीडीपी में देश में रहने वाले और देश से बाहर रहने वाले सभी नागरिकों की आय को जोड़ा जाता था, जिसे अब ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट कहा जाता है.

कोरोना पर फुल कवरेज के लि‍ए यहां क्ल‍िक करें

जीडीपी का आम लोगों से क्‍या है कनेक्‍शन?

जीडीपी के आंकड़ों का आम लोगों पर भी असर पड़ता है. अगर जीडीपी के आंकड़े लगातार सुस्‍त होते हैं तो ये देश के लिए खतरे की घंटी मानी जाती है. जीडीपी कम होने की वजह से लोगों की औसत आय कम हो जाती है और लोग गरीबी रेखा के नीचे चले जाते हैं. इसके अलावा नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार भी सुस्‍त पड़ जाती है. आर्थिक सुस्‍ती की वजह से छंटनी की आशंका बढ़ जाती है. वहीं लोगों का बचत और निवेश भी कम हो जाता है.

जीडीपी पर भरोसे की क्यों होती है आलोचना

जीडीपी आंकड़ों की इस मामले में आलोचना की जाती है कि इसे जीवन स्तर का पैमाना नहीं माना जा सकता. इसकी एक अच्छी बात यह है कि इसे समय-समय पर अक्सर तिमाही जारी किया जाता है और दुनिया भर में इसको मापने का पैमाना लगभग एक है. लेकिन इसकी सीमा ये है कि इसमें कई चीजें शामिल नहीं की जातीं, जैसे इसमें देश से बाहर होने वाले नागरिकों या कंपनियों की कमाई को शामिल नहीं किया जाता.

इसके अलावा इसमें बाजार से बाहर होने वाले लेनदेन को मापना संभव नहीं होता. जैसे अगर मोहन ने अपने 10 किलो अनाज देकर राम से 10 किलो अमरूद खरीद लिए तो यह लेनदेन कहीं से भी जीडीपी का हिस्सा नहीं बन पाता. यानी जिन देशों में कैश या बाजार में लेनदेन कम होती है, उनका जीडीपी आंकड़ा हमेशा कम ही आएगा. जीडीपी से यह भी नहीं पता चलता कि देश के अमीरों और गरीबों में आय की कितनी असमानता है.

इसकी सबसे बड़ी सीमा यही है कि जीडीपी घटने या बढ़ने से यह पता नहीं चल पाता कि वास्तव में लोगों का कल्याण भी हो रहा है या नहीं. यूपीए सरकार के करीब 10 फीसदी की तेज बढ़त वाले दौर में भी गरीबी-बदहाली कम नहीं हुई थी. इसी को आधार बनाकर अब कई लोग कह रहे हैं कि जीडीपी पर बहुत ज्यादा जोर देना एक तरह की बेवकूफी है.

सिमोन कुजनेट्स ने यूएस कांग्रेस की 1934 की अपनी पहली रिपोर्ट में ही कहा था जब तक व्यक्तिगत आय के वितरण के बारे में जानकारी नहीं मिलती तब तक इसका सही मापन नहीं हो सकता कि लोगों का आर्थ‍िक कल्याण हुआ या नहीं.

कैसे होती है जीडीपी की गणना

जीडीपी को मापने का अंतरराष्ट्रीय मानक बुक सिस्टम ऑफ नेशनल एकाउंट्स (1993) में तय किया गया है, जिसे SNA93 कहा जाता है. इसे अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF), यूरोपीय संघ, आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (OECD), संयुक्त राष्ट्र और वर्ल्ड बैंक के प्रतिनिधियों ने तैयार किया है.

भारत में जीडीपी की गणना तिमाही-दर-तिमाही होती है. भारत में कृषि, उद्योग और सेवा तीन अहम हिस्से हैं, जिनके आधार पर जीडीपी तय की जाती है. इसके लिए देश में जितना भी प्रोडक्शन होता है, जितना भी व्यक्तिगत उपभोग होता है, व्यवसाय में जितना निवेश होता है और सरकार देश के अंदर जितने पैसे खर्च करती है उसे जोड़ दिया जाता है. इसके अलावा कुल निर्यात (विदेश के लिए जो चीजें बेची गईं है) में से कुल आयात (विदेश से जो चीजें अपने देश के लिए मंगाई गई हैं) को घटा दिया जाता है. जो आंकड़ा सामने आता है, उसे भी ऊपर किए गए खर्च में जोड़ दिया जाता है. यही हमारे देश की जीडीपी होता है.

जब जीडीपी में राष्ट्रीय जनसंख्या से भाग दिया जाता है तो प्रति व्यक्ति जीडीपी निकलती है. सबसे पहले तय होता है बेस ईयर. यानी आधार वर्ष. एक आधार वर्ष में देश का जो उत्पादन था, वो इस साल की तुलना में कितना घटा-बढ़ा है? इस घटाव-बढ़ाव का जो रेट होता है, उसे ही जीडीपी कहते हैं.

जीडीपी का आकलन देश की सीमाओं के अंदर होता है. यानी गणना उसी आंकड़े पर होगी, जिसका उत्पादन अपने देश में हुआ हो. इसमें सेवाएं भी शामिल हैं. मतलब बाहर से आयातित चीजों का जीडीपी में कोई बड़ा हाथ नहीं है.

जीडीपी रेट में गिरावट का सबसे ज्यादा असर गरीब लोगों पर पड़ता है. भारत मे आर्थिक असमानता बहुत ज्यादा है. इसलिए आर्थिक वृद्धि दर घटने का ज्यादा असर गरीब तबके पर पड़ता है. इसकी वजह यह है कि लोगों की औसत आय घट जाती है. नई नौकरियां पैदा होने की रफ्तार घट जाती है. वित्त वर्ष 2018-19 में प्रति व्यक्ति मासिक आय 10,534 रुपये थी. सालाना 5 फीसदी जीडीपी ग्रोथ का मतलब है कि वित्त वर्ष 2019-20 में प्रति व्यक्ति आय सिर्फ 526 रुपये बढ़ेगी.

कौन तय करता है GDP

जीडीपी को नापने की जिम्मेदारी सांख्यिकी और कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय के तहत आने वाले सेंट्रल स्टेटिस्टिक्स ऑफिस यानी केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय की है. यह ऑफिस ही पूरे देश से आंकड़े इकट्ठा करता है और उनकी कैलकुलेशन कर जीडीपी का आंकड़ा जारी करता है.

Source - Aaj Tak 

No comments:

Post a Comment

Note: only a member of this blog may post a comment.

Disclaimer: The Information/News/Video provided in this Platform has been collected from different sources. We Believe that “Knowledge Is Power” and our aim is to create general awareness among people and make them powerful through easily accessible Information.

NOTE: We do not take any responsibility of authencity of Information/News/Videos.